The Independence Day Special
Jai Bhim to you all!!
The Great tribute to the real heroes of the Indian freedom.
मंचस्थ अतिथिगणों, अभिभावकों, अध्यापकों और मेरे प्रिय भाई-बहनों, आप सभी को मेरी तरफ से सुबह का नमस्कार!
आप सभी जानते हैं कि आज हम सब यहाँ क्यों एकत्र हुए हैं. हम यहाँ एकत्र हुए हैं, उस महान् पावन दिवस की याद में, जिसकी बदौलत आज हम इस खुली आबोहवा में साँस ले रहे हैं. आज हम स्वतंत्रता दिवस मनाने को एकत्र हुए हैं.
स्वतंत्रता! स्वतंत्रता अर्थात् कुछ भी करने की स्वतंत्रता, अपने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कुछ भी कहने -बोलने की स्वतंत्रता, वो सभी स्वतंत्रता जो आज हमें मिली हुई है.
आज हम कुछ भी अपने मन-माफिक कर पाते हैं. क्यों? क्योंकि आज हम स्वतंत्र हैं. एक वक्त था, जब हम अंग्रेज़ों के द्वारा गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए थे. उस समय हमें कुछ भी करने की स्वतंत्रता न थी. प्रत्येक कार्य उन फिरंगियों के इशारे पर करने पड़ते थे. यहाँ तक कि हम अपने अनुसार सोच भी नहीं सकते थे.
जनता भारी कर के बोझ के तले दबी हुई थी. प्रत्येक भारतीय की हालत तंग थी. हमारे द्वारा दिया जाने वाला वो कर ब्रिटेन जाता और उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करता और हमारे हाथ कुछ लगती तो, बस प्रताड़ना!
आज हम जिस माहौल में रह रहे हैं, उसे देखकर तो हम उन दिनों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आज हम स्वतंत्र हैं, तो ये स्वतंत्रता ऐसे ही नहीं मिल गई है. इसके लिए भारत माँ के अनेक वीर सपूतों को अपने रक्त की आहूति देनी पड़ी है. अनेकों आन्दोलन करने पड़े हैं. तब जाकर मिली है ये स्वतंत्रता.
अब मैं अपनी इस बात पर आता हूँ, कि कैसे हमारा स्वाधीन भारत पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा गया.
सर्वप्रथम सन् 1600 के लगभग में अंग्रेज व्यापारियों ने भारत में व्यापार आरंभ किया. 18 वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पर (पंख) भारत में पसारने शुरू कर दिए. धीरे -धीरे इस कंपनी ने भारतीय सत्ता पर कब्जा कर लिया और लोगों से कर वसूला जाने लगा, विरोध करने पर लोगों को प्रताड़ित किया जाता और इस प्रकार भारत गणराज्य को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ लिया गया.
इस प्रताड़ना के खिलाफ लोगों में रोष उत्पन्न हो गया. और इस प्रकार भारत में अंग्रेज आधिपत्य के साथ ही विरोध के सुर शुरू हो गए थे. अनेक छोटे-बड़े युद्ध होते रहते थे. मगर बड़ी और महत्वपूर्ण क्रांति का आगाज सन् 1857 के मेरठ के सैनिक विद्रोह से हुआ. जिसके बाद यह महासंग्राम 1947 में भारत की आजादी के साथ ही समाप्त हुआ. इस संग्राम में भारत माँ के अनेक सपूतों को अपना जीवन न्यौछावर करना पड़ा. यह आन्दोलन दो गुटों में शुरू हुआ. एक सशस्त्र तो दूसरा अहिंसक आंदोलन. जिसमें अनेक महापुरुषों जैसे:महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्र शेखर आजाद, आदि-आदि ने अपना योगदान दिया. ये तो चन्द नाम हैं, जिन्हें हम जानते हैं. ऐसे ही सैकड़ों - लाखों गुमनाम शहीदों के बलिदान को हम कैसे भुला सकते हैं?
इस महायुद्ध के आगे अंग्रेजी हुकूमत को अंतत: झुकना पड़ा और 14 अगस्त 1947 की रात को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर भारतीय ध्वज लहराकर, स्वतंत्रता की उद्घोषणा की.
उसी दिन की याद में हम सब भारतीय एक साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव को भूलकर ये स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं.
हम आज स्वतंत्र हैं, इसका अर्थ ये नहीं है, कि हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गए हैं, आज भी हम इस भारत-भूमी के प्रति अपने कर्तव्यों से बंधे हुए हैं, जिन्हें हमें भूलना नहीं चाहिए बल्कि पूरी निष्ठा के साथ निभाने चाहिए. सभी को किसी भी प्रकार के द्वेष भाव को मिटाकर, इस देश को एकबार फिर से सोने की चिड़िया बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए. हमें आज एकता, भातृभाव और सौहार्द्य की आवश्यकता है, जिससे हम अपने भारतवर्ष को फिर सफलता के शिखर तक पहुंचा सकें.
मैं अपनी बात को ज्यादा न बढाते हुए, अपने शब्दों को यही विराम देता हूँ.
जय जवान! जय किसान! जय भीम! जय भारत!
सम्राट डी एस जी
The Great tribute to the real heroes of the Indian freedom.
मंचस्थ अतिथिगणों, अभिभावकों, अध्यापकों और मेरे प्रिय भाई-बहनों, आप सभी को मेरी तरफ से सुबह का नमस्कार!
आप सभी जानते हैं कि आज हम सब यहाँ क्यों एकत्र हुए हैं. हम यहाँ एकत्र हुए हैं, उस महान् पावन दिवस की याद में, जिसकी बदौलत आज हम इस खुली आबोहवा में साँस ले रहे हैं. आज हम स्वतंत्रता दिवस मनाने को एकत्र हुए हैं.
स्वतंत्रता! स्वतंत्रता अर्थात् कुछ भी करने की स्वतंत्रता, अपने विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कुछ भी कहने -बोलने की स्वतंत्रता, वो सभी स्वतंत्रता जो आज हमें मिली हुई है.
आज हम कुछ भी अपने मन-माफिक कर पाते हैं. क्यों? क्योंकि आज हम स्वतंत्र हैं. एक वक्त था, जब हम अंग्रेज़ों के द्वारा गुलामी की बेड़ियों में जकड़े हुए थे. उस समय हमें कुछ भी करने की स्वतंत्रता न थी. प्रत्येक कार्य उन फिरंगियों के इशारे पर करने पड़ते थे. यहाँ तक कि हम अपने अनुसार सोच भी नहीं सकते थे.
जनता भारी कर के बोझ के तले दबी हुई थी. प्रत्येक भारतीय की हालत तंग थी. हमारे द्वारा दिया जाने वाला वो कर ब्रिटेन जाता और उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करता और हमारे हाथ कुछ लगती तो, बस प्रताड़ना!
आज हम जिस माहौल में रह रहे हैं, उसे देखकर तो हम उन दिनों की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. आज हम स्वतंत्र हैं, तो ये स्वतंत्रता ऐसे ही नहीं मिल गई है. इसके लिए भारत माँ के अनेक वीर सपूतों को अपने रक्त की आहूति देनी पड़ी है. अनेकों आन्दोलन करने पड़े हैं. तब जाकर मिली है ये स्वतंत्रता.
अब मैं अपनी इस बात पर आता हूँ, कि कैसे हमारा स्वाधीन भारत पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा गया.
सर्वप्रथम सन् 1600 के लगभग में अंग्रेज व्यापारियों ने भारत में व्यापार आरंभ किया. 18 वीं सदी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने पर (पंख) भारत में पसारने शुरू कर दिए. धीरे -धीरे इस कंपनी ने भारतीय सत्ता पर कब्जा कर लिया और लोगों से कर वसूला जाने लगा, विरोध करने पर लोगों को प्रताड़ित किया जाता और इस प्रकार भारत गणराज्य को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ लिया गया.
इस प्रताड़ना के खिलाफ लोगों में रोष उत्पन्न हो गया. और इस प्रकार भारत में अंग्रेज आधिपत्य के साथ ही विरोध के सुर शुरू हो गए थे. अनेक छोटे-बड़े युद्ध होते रहते थे. मगर बड़ी और महत्वपूर्ण क्रांति का आगाज सन् 1857 के मेरठ के सैनिक विद्रोह से हुआ. जिसके बाद यह महासंग्राम 1947 में भारत की आजादी के साथ ही समाप्त हुआ. इस संग्राम में भारत माँ के अनेक सपूतों को अपना जीवन न्यौछावर करना पड़ा. यह आन्दोलन दो गुटों में शुरू हुआ. एक सशस्त्र तो दूसरा अहिंसक आंदोलन. जिसमें अनेक महापुरुषों जैसे:महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, चन्द्र शेखर आजाद, आदि-आदि ने अपना योगदान दिया. ये तो चन्द नाम हैं, जिन्हें हम जानते हैं. ऐसे ही सैकड़ों - लाखों गुमनाम शहीदों के बलिदान को हम कैसे भुला सकते हैं?
इस महायुद्ध के आगे अंग्रेजी हुकूमत को अंतत: झुकना पड़ा और 14 अगस्त 1947 की रात को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने लाल किले पर भारतीय ध्वज लहराकर, स्वतंत्रता की उद्घोषणा की.
उसी दिन की याद में हम सब भारतीय एक साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव को भूलकर ये स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं.
हम आज स्वतंत्र हैं, इसका अर्थ ये नहीं है, कि हम पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो गए हैं, आज भी हम इस भारत-भूमी के प्रति अपने कर्तव्यों से बंधे हुए हैं, जिन्हें हमें भूलना नहीं चाहिए बल्कि पूरी निष्ठा के साथ निभाने चाहिए. सभी को किसी भी प्रकार के द्वेष भाव को मिटाकर, इस देश को एकबार फिर से सोने की चिड़िया बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए. हमें आज एकता, भातृभाव और सौहार्द्य की आवश्यकता है, जिससे हम अपने भारतवर्ष को फिर सफलता के शिखर तक पहुंचा सकें.
मैं अपनी बात को ज्यादा न बढाते हुए, अपने शब्दों को यही विराम देता हूँ.
जय जवान! जय किसान! जय भीम! जय भारत!
सम्राट डी एस जी
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