बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस विशेष


विश्वरत्न बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर

( 14 अप्रेल 1891 - 6 दिसम्बर 1956 )
 को महापरिनिर्वाण दिवस पर कोटि कोटि 
विनम्र अभिवादन!


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6 दिसंबर 1956 की वो सर्द सुबह कितनी भयानक रही होगी, जब बाबा साहेब के रसोइये ने उनके देहान्त की खबर दी। किसी ने नहीं सोचा होगा, कि यह सुबह उस उभरते भारतवर्ष को कैसा दंश देकर जाएगी! हर जगह शांति थी, किसी को भनक भी नहीं लगी, और वो छोड़कर जा चुका था। लाखों भारतीयों की आँखों में आँसु दे, सभी को चैन की नींद दे, वो सदा के लिए सो चुका था।
जब नानकचंद ने दिल्ली के प्रसार माध्यम को समाचार दिया और 11:55 AM बजे मुम्बई के P. E. Society के कार्यालय में फोन पर यह दुखःद समाचार दिया गया। तब तक किसी को इसके बारे में कुछ पता नहीं था कि युगपरिवर्तक जा चुका है, हम सब के बीच से !



उसके बाद घनश्याम तळवटकर को सर्वप्रथम खबर दी गई।


और फिर औरंगाबाद फोन करके बलवंतराव और वराळे को यह दुःखद समाचार दिया गया।
उसके बाद तो, फिर क्या था, यह बात आग की तरह चारों और पूरे भारतवर्ष में फैल गई और तब ऐसा लगा जैसे पूरा देश मानो, अनाथ ही हो गया था।
दिल्ली में अपने निवास पर तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु ने अन्य मंत्रियों को यह दुःखद खबर दी।
सायंकाल 4:30 PM पर बाबा साहेब का पार्थिव शरीर ट्रक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर लाया गया।
यहाँ से बाबा साहेब की अंतिम यात्रा की शुरुआत हुई।
रात्रि 9:00 PM पर विमान की  नागपुर में Landing हुई।
जिस जगह बाबा साहेब ने दीक्षा ग्रहण की थी ( दीक्षाभूमि ), उसी जगह उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रात्रि 9:00 से 12:00 बजे तक  रखा गया। वहाँ बाबा के अंतिम दर्शन के लिए हजारों की संख्या में लोग अश्रुपूरित आँखों के साथ आ चुके थे।
रात्रि 12:00 बजे विमान ने नागपुर से प्रस्थान किया और रात्रि 1:50 बजे मुम्बई के सांताक्रुज़ हवाई अड्डे ( Santa Cruz Airport ) पर उतरने से पुर्व ही लाखों की संख्या में जनसैलाब आँखों में आँसू लिए मौजूद था।
तब बाबा साहेब को वहाँ से राजग्रह ले जाया गया।
उस जगह अत्यधिक आक्रोश के साथ ही रोने की आवाजें गूंजने लगी।
जब कार्यकर्ता बाबा के अंतिम संस्कार के लिए व्यवस्था करने लगे।



तब सवर्णों ने अंतिम संस्कार के लिए जगह देने से मना कर दिया।
और हिन्दू Colony के हिन्दू समशान भूमि में अंतिम संस्कार न करने देने की चर्चा सवर्णों के मध्य होने लगी।
तब कार्यकर्ता चिंतित थे कि,
मैं एक हिन्दू के रूप में नहीं मरुंगा, ऐसी प्रतिज्ञा करने वाले बाबा का अंतिम संस्कार हिन्दुओं के समशान में कैसे?
जबरदस्त भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए, उनका अंतिम संस्कार शिवाजी पार्क में करने का निर्णय लिया गया।
👉लेकिन तात्कालीन Municipal Commissioner पी. आर. नायक ने इसका विरोध किया और इसकी अनुमति नहीं दी।
उसके बाद, जहाँ अब मुम्बई का आंबेडकर महाविद्यालय है, वहाँ उस समय मोकळे मैदान था, उस जगह अंतिम संस्कार करने के बारे में विचार किया गया।
👉लेकिन वह जगह देने के लिए Congress ने विरोध किया।
तब बाबा साहेब के करीबी कार्यकर्ता सी. के. बोले ने अपनी निजी जमीन पर अंतिम संस्कार के लिए कहा।
और तब  बौद्ध धम्म की विधि के अनुसार भिक्खु एच. धर्मानंद की उपस्तिथि में भदन्त आनंद कौशल्यायन के हाथों अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ।
और इस प्रकार डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर नाम का, चक्रवात जैसा प्रचंड तूफान शांत हो गया। ( बाबासाहेब आम्बेडकर नामच्या झंझावत नीळ वादळ शांत झाले! )

मित्रों... सोचो...
बाबा साहेब की मृत्यु के बाद भी इन लोगों ने कितना अधिक विरोध किया।






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जिस मनुष्य ने हमारे लिए अपना पूरा जीवन कुर्बान कर दिया, उसके साथ हम गद्दारी कैसे कर सकते हैं। क्या हम उसके बलिदान को इतना जल्दी भुला देंगे।
हमें अभी भी बाबा के दिखाए हुए रास्ते पर चलने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है।



🛡"शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो"🛡

इन पंक्तियों को धरातल पर लाने के लिए हमें बहुत कुछ करना बाकी है।
क्या आज हम फेसबुक वाल update कर सो जाएंगे और अपना कर्तव्य पूरा हुआ समझ लेंगे?
क्या "बाबा साहेब को विनम्र अभिवादन" इतना कहकर ही अपना पल्ला झाड़ लेंगे?
या
आने वाले कल के लिए, बीते हुए कल और आज से प्रेरना लेकर कुछ करने का संकल्प लेंगे।
वो तो चला गया, अपना पूरा जीवन कुर्बान करके, लेकिन हम क्या कर रहे हैं और क्या करने वाले हैं।
क्या हम अभी तक उसके विचारों को अपनाने की तो बात ही दूर है, समझ भी पाएँ हैं।
अभी एकता के साथ लड़ाई लड़नी बाकी है।
दिन प्रतिदिन होने वाले जातिगत भेदभाव से मुकाबला करने के लिए हमें तैयार रहना होगा।

🛡जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय नीला सलाम🛡

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