BhimaKoregaon
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‘भीमा नदी’ के तट पर बसा गाँव... ‘भीमा – कोरेगांव’ पुणे ( महाराष्ट्र ) की कहानी... 01 जनवरी 1818 का ‘ठंडा’ दिन... दो ‘सेनाएं’, आमने - सामने...
मुम्बई नेटिव लाइट इन्फेंट्री के 500 महार जवान, 250 घुड़सवार, दो तोपें और कैप्टन स्टॉटन का नेतृत्व. और सामने पेशवाओं के 25000 से भी ज्यादा पैदल सैनिक और 3000 घुड़सवार. इनका सामना होने से पहले कैप्टन स्टॉटन 25 मील पैदल चलकर कोरेगांव पहुँचें थे. युद्ध शुरु हुआ. महार सेना का नेतृत्व रतनाक, सतनाक और चकनाक कर रहे थे. यह युद्ध एक दिन और एक रात चला, जिसमें देखते ही देखते कुछ महारों ने पेशवाओं की विशाल सेना को धूल चटा दी. महारों के सामने पेशवाओं की ये विशाल सेना भी बौनी साबित हुई. इस दिन काम करने वाले महारों का सामर्थ्य पूरी दुनिया ने देखा. इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए शूरवीरों की शौर्यगाथा आज भी अमर है और 75 फिट ऊँचे विजयस्तम्भ पर दर्ज है. बाबा साहेब हर वर्ष 1 जनवरी को इस स्तम्भ पर नमन करने यहाँ आते थे.
'ब्राह्मण’ राज बचाने की फिराक में ‘पेशवा’ और दूसरी तरफ ‘पेशवाओं’ के पशुवत ‘अत्याचारों’ का ‘बदला’ चुकाने की ‘फिराक’ में गुस्से से तमतमाए 500 “ महारों “ के बीच घमासान ‘युद्ध’ हुआ जिसमे ‘ब्रह्मा’ के मुँह से ‘जनित’ ( पैदा हुए ) 28000 ‘पेशवाओं’ की 500 महार योद्धाओं से शर्मनाक ‘पराजय’ हुई. हमारे सिर्फ 500 योद्धाओं ने 28000 पेशवाओं का नाश कर दिया और इसके साथ ही भारत से पेशवाई खत्म कर दी. ऐसे बहादुर थे हमारे पुरखे और ऐसा है हमारा गौरवशाली इतिहास .
सब से पहले उन 500 ‘महार’ ( पूर्वजों ) करो ‘नमन’ करो ...
क्यों ... ??
क्योंकी.........
सोचो...
28000÷500=56 के हिसाब से हमारे एक महार सैनिक ने अकेले ने ही 56 पेशवाओं को काट डाला था, कहीं देखा,सुना या पढ़ा है ? ऐसे योद्धा के बारे में...
नहीं ना...!!!
क्यों की ..... भारत में ब्राह्मणों का राज चलता है और वे कभी नहीं चाहते की हमारे वीरों की कहानी हम तक पहुचे!
एक बार फिर इन ब्राह्मणों को 1818 दिखाना होगा.....!!!
जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय नीला सलाम...!!!
500- The Battle of Bhima Koregaon
‘भीमा नदी’ के तट पर बसा गाँव... ‘भीमा – कोरेगांव’ पुणे ( महाराष्ट्र ) की कहानी... 01 जनवरी 1818 का ‘ठंडा’ दिन... दो ‘सेनाएं’, आमने - सामने...
बात उस समय की है जब भारत गणराज्य पर अंग्रेजों का आधिपत्य था. तब अछूत जातियों को कमर में झाड़ू और गले में हांडी लटकाई जाती थी, ताकि अछूतों के चलने से अपवित्र हुई धरती साफ होती रहे और अछूतों के पदचिन्हों पर ब्राह्मणों के पैर न पड़ सकें तथा अछूत धरती पर थूक कर इसे अपवित्र न कर सकें.
वैसे तो महार बलवान और कद-काठी में सुडौल थे, मगर जब यदि किसी को सदियों से ही दमित किया जाता रहा हो वो भला कैसे विरोध कर सकेगा. इसलिए वो अपना सम्मान बचाना चाहते थे और दूसरी तरफ उसी समय अंग्रेज भारत में सत्ता स्थापित करने की फिराक में थे. तब अंग्रेज़ों की नजर महारों पर पड़ी, क्योंकि ये कद-काठी में सुडौल और निडर थे. इसलिए ब्रिटिश सेना में महारों को शामिल कर लिया गया. और उन्हें प्रशिक्षण दिया गया. अंग्रेज़ों की नजर पेशवाओं की सल्तनत पर थी, और वे ब्रिटिश राज कायम करना चाहते थे. अंग्रेज़ों ने पेशवाओं पर आक्रमण की तैयारी कर ली. लेकिन जब ये खबर महारों के सेनापति पिगनाथ के कानों में पड़ी तो वो स्वयं पेशवा बाजीराव -II के पास मिलने पहुँचें. और उनको बताया कि हमारी मनसा अंग्रेज़ों के तरफ से लड़ने की बिल्कुल नहीं है, यदि हम आपकी और से अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ें और उन्हें यहाँ से भगा दें तो हमारा स्थान आपकी सेना में क्या होगा. पेशवा बाजीराव ने इस बात को साफ नकारते हुए कहा कि, "सुई की नौक पर थर्राते हुए एक धूल के कण जितना स्थान भी तुम महारों को हमारी सेना में नहीं मिलेगा". पेशवा का जवाब सुनकर पेगनाथ झल्ला उठे और कहा, "अब तक हम तुम्हारे अत्याचार सहते रहें हैं, मगर अब इस धरती की लाज हमसे और ना बचेगी." और ऐसा कहकर पेगनाथ वहाँ से चले गए. अब महार ब्रिटिश इन्फेंट्री का हिस्सा थे. और इस अन्याय के खिलाफ जंग का ऐलान हो चुका था.
महारांची तलवार
मुम्बई नेटिव लाइट इन्फेंट्री के 500 महार जवान, 250 घुड़सवार, दो तोपें और कैप्टन स्टॉटन का नेतृत्व. और सामने पेशवाओं के 25000 से भी ज्यादा पैदल सैनिक और 3000 घुड़सवार. इनका सामना होने से पहले कैप्टन स्टॉटन 25 मील पैदल चलकर कोरेगांव पहुँचें थे. युद्ध शुरु हुआ. महार सेना का नेतृत्व रतनाक, सतनाक और चकनाक कर रहे थे. यह युद्ध एक दिन और एक रात चला, जिसमें देखते ही देखते कुछ महारों ने पेशवाओं की विशाल सेना को धूल चटा दी. महारों के सामने पेशवाओं की ये विशाल सेना भी बौनी साबित हुई. इस दिन काम करने वाले महारों का सामर्थ्य पूरी दुनिया ने देखा. इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए शूरवीरों की शौर्यगाथा आज भी अमर है और 75 फिट ऊँचे विजयस्तम्भ पर दर्ज है. बाबा साहेब हर वर्ष 1 जनवरी को इस स्तम्भ पर नमन करने यहाँ आते थे.
'ब्राह्मण’ राज बचाने की फिराक में ‘पेशवा’ और दूसरी तरफ ‘पेशवाओं’ के पशुवत ‘अत्याचारों’ का ‘बदला’ चुकाने की ‘फिराक’ में गुस्से से तमतमाए 500 “ महारों “ के बीच घमासान ‘युद्ध’ हुआ जिसमे ‘ब्रह्मा’ के मुँह से ‘जनित’ ( पैदा हुए ) 28000 ‘पेशवाओं’ की 500 महार योद्धाओं से शर्मनाक ‘पराजय’ हुई. हमारे सिर्फ 500 योद्धाओं ने 28000 पेशवाओं का नाश कर दिया और इसके साथ ही भारत से पेशवाई खत्म कर दी. ऐसे बहादुर थे हमारे पुरखे और ऐसा है हमारा गौरवशाली इतिहास .
सब से पहले उन 500 ‘महार’ ( पूर्वजों ) करो ‘नमन’ करो ...
क्यों ... ??
क्योंकी.........
1 ) उस ‘हार’ के बाद, ‘पेशवाई’ खत्म हो गयी थी |आज भी भीमा कोरेगाव में विजय स्तम्भ खड़ा है और उस पर उन हमारे शुरवीर ,बहादुर और वतन परस्त महार सैनिकों जो उस युद्ध में शहीद हुए थे उनके नाम उस पे लिखे हुए हैं।
2 ) ‘अंग्रेजों’ को इस भारत देश की ‘सत्ता’ मिली |
3 ) ‘अंग्रेजो’ ने इस भारत देश में ‘शिक्षण’ का प्रचार किया, जो ‘हजारो’ सालों से ‘बहुजन’ समाज के लिए ‘बंद’ था |
4 ) ‘महात्मा फुले’ पढ़ पाए, और इस देश की जातीयता ‘समझ’ पाऐ |
5 ) अगर ‘महात्मा फुले’ न पढ़ पाते तो ‘शिवाजी महाराज’ की ‘समाधी’ कौन ‘ढूँढ’ निकालते |
6 ) अगर ‘महात्मा फुले’ न ‘पढ़’ पाते, तो ‘सावित्री बाई’ कभी इस देश की प्रथम ‘महिला शिक्षिका’ न बन सकती थी |
7 ) अगर ‘सावित्री बाई’, न ‘पढ़’ पाई होती तो, इस देश की ‘महिला’ कभी न पढ़ पाती |
8 ). ‘शाहू जी महाराज’, ‘आरक्षण’ कभी न दे पाते !
9 ) ‘डॉ. बाबा साहब’, कभी न ‘पढ़’ पाते !
10 ) अगर 1 जनवरी, 1818 को 500 ‘महार’ सैनिकों ने 28,000 ‘ब्राम्हण’ ( पेशवाओं ) को, मार न डाला होता तो ... !!!
आज हम लोग कहाँ पे होते ... ??
सोचो...
28000÷500=56 के हिसाब से हमारे एक महार सैनिक ने अकेले ने ही 56 पेशवाओं को काट डाला था, कहीं देखा,सुना या पढ़ा है ? ऐसे योद्धा के बारे में...
नहीं ना...!!!
क्यों की ..... भारत में ब्राह्मणों का राज चलता है और वे कभी नहीं चाहते की हमारे वीरों की कहानी हम तक पहुचे!
एक बार फिर इन ब्राह्मणों को 1818 दिखाना होगा.....!!!
जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय नीला सलाम...!!!
500- The Battle of Bhima Koregaon
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